120 सैनिकों के साथ 2000 चीनी सैनिकों से लोहा लेने वाला मेजर


भोर के 4 बजे 123 सैनिकों को लेकर 16000 फीट की ऊंचाई पर बिना किसे अनुभव के 2000 चीनी सैनिकों का सामना किया। मेजर शैतान सिंह भाटी ने 18 घंटे के भीषण युद्ध के बाद वीर गति को प्राप्त हो गए। इन्हें वर्ष 1963 में मरणोपरांत परमवीर चक्र का सम्मान दिया गया। 

●​जन्म

       मेजर शैतान सिंह भाटी का जन्म 1 दिसंबर 1924 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बंसार गांव में पिता हेम सिंह( लेफ्टिनेंट कर्नल ) के घर हुआ था जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में भारतीय सेना के साथ सेवा की और ब्रिटिश सरकार द्वारा ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर से सम्मानित किए गए थे ।




●प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

       मेजर शैतान सिंह ने जोधपुर के राजपूत हाई स्कूल में अपनी मैट्रिक तक की पढाई की । स्कूल में वह एक फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में अपने टीम के कप्तान थे। 1943 में स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद शैतान सिंह जसवंत कॉलेज से 1947 में स्नातक किया। 1 अगस्त 1949 को वह एक अधिकारी के रूप में जोधपुर राज्य बलों में शामिल हो गए।





●गोवा का भारत में विलय

        जोधपुर की रियासत का भारत में विलय हो जाने के बाद उन्हें कुमाऊं रेजिमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने नागा हिल्स ऑपरेशन तथा 1961 में गोवा के भारत में विलय में हिस्सा लिया था। उन्हें 11 जून 1962 को उन्हें मेजर पद के लिए पदोन्नत किया गया था।


●भारत चीन युद्ध

      हिमालय क्षेत्र में विवादित सीमाओं पर लंबे समय से भारत और चीन के बीच असहमति थी। विवादित क्षेत्र में बढ़ते चीनी घुसपैठ का सामना करने के लिए, भारत के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनसे निपटने के लिए रणनीतियों के बारे में पूछा। हालांकि, भारतीय सेना द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को खारिज कर इसके विपरित उन्होंने "फॉरवर्ड पॉलिसी" नामक एक नौकरशाह द्वारा प्रस्तावित एक योजना को मंजूरी दी जिसमे चीनी सीमा के क्षेत्र में कई छोटी-छोटी पोस्टों की स्थापना के लिए कहा गया था। चीनी घुसपैठ के खिलाफ सार्वजनिक आलोचना के कारण नेहरू ने सेना की सलाह के खिलाफ "फॉरवर्ड पॉलिसी" को लागू कर दिया। चीन को भौगोलिक लाभ प्राप्त था और यह हमारी सेना के लिए चिंता का विषय था। अतिरिक्त चीनी हमले के समय कई छोटी छोटी पोस्टों को बनाए रखना नामुमकिन था। 


●रेजांग लॉ का युद्ध

      1962 में रेजांगला के चुसुल सेक्टर में कुमाऊं रेजीमेंट का 13वीं बटालियन के 120 जवान तैनात थे। चार्ली कंपनी की कमान मेजर शैतान सिंह के हाथ में थी और सभी जवान 3 पलटन में अपनी-अपनी पोजिशन पर थे। भारत-चीन युद्ध के दौरान ये इकलौता इलाका था, जो भारत के कब्जे में था। LAC पर काफी तनाव के साथ–2 सर्द मौसम की मार को सहन कर बॉर्डर पर जवान मुस्तैदी से सीमा की सुरक्षा में खड़े थे। 
तेज चलती बर्फीली हवाएं। शून्य से कम तापमान में खून जमा देने वाली ठंड। करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई का बर्फीला मैदान, जिस पर लड़ने का कोई अनुभव नहीं था। 18 नवंबर 1962 को सुबह के चार बजे सामने से सेल्फ लोडिंग राइफल्स, असलाह बारूद से लैस होकर आती 2000 चीनी सेना की बड़ी टुकड़ी, जिसके मुकाबले के लिए 120 सेना के साथ आउटडेटेड थ्री नॉट थ्री बंदूकें और थोड़ा गोला-बारूद था। कमांडिंग ऑफिसर ने तुरंत कोई भी सैन्य मदद दे पाने से इंकार कर दिए। बिग्रेड के कमांडर का आदेश मिला कि युद्ध करें या चाहें तो चौकी छोड़कर पीछे हट सकते हैं। मेजर शैतान सिंह यह जानते हुए कि उनके पास सिर्फ 120 सैनिक, 100 हथगोले, 300-400 राउंड गोलियां और कुछ पुरानी बंदूकें हैं, जिन्हें दूसरे विश्वयुद्ध में नकारा घोषित किया जा चुका है। जबकि सामने बेहद खतरनाक हथियारों से लैस 2000 चीनी सैनिक अपने पूरे प्लान के साथ थे। फिर भी जांबाज सिपाही अपने मेजर के नेतृत्व में दुश्मन सैनिकों से लड़े।
मेजर शैतान सिंह ने कम हथियारों को देखते हुए रणनीति बनाई कि जब चीनी सैनिक फायरिंग रेंज में आएं, तभी उन पर गोली दागी जाए। मेजर सिंह ने जवानों को बोला कि एक गोली पर एक चीनी सैनिक का नाम तो होना ही चाहिए । एक भी गोली फिजूल नहीं जानी चाहिए। इस रणनीति पर काम करते हुए भारतीय सेना से दिन भर की लड़ाई के बाद चीनी सेना को लगा कि भारत की यह टुकड़ी संख्याबल में उतनी छोटी नहीं है जैसा वह सोच रहे थे। इसके बाद चीनी सैनिक पीछे हटने का छलावा करने लगे। और उसे भारतीय सेना समझ नही पायी। उस समय तक सभी भारतीय सैनिक सुरक्षित थे। 
5:40 बजे चीनी सेना ने पुनः मोर्टार से हमले करने शुरू कर दिए और लगभग 350 चीनी सैनिकों ने आगे बढ़ना शुरू किया। चीनी सेना द्वारा सामने से किए गए हमले असफल होने के बाद लगभग चार सौ चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया। साथ ही 8वीं प्लाटून पर मशीन गन और मोर्टार से पोस्ट के तार बाड़ के पीछे से हमला किया गया और 7वीं प्लाटून पर 120 चीनी सैनिकों ने पीछे से हमला किया। भारतीयों ने 3 इंच मोर्टार के गोले से मुकाबला किया और कई चीनी सैनिकों को मार दिया। जैसे ही आखिरी 20 जीवित लोग बचे, भारतीयों ने अपनी खाइयों से बाहर निकल कर चीनी सैनिकों के साथ हाथ से हाथ से लड़ने लड़ने लग गए। हालांकि प्लाटून जल्द ही चीन के अतिरिक्त सैनिकों के आगमन से घेर ली गई और आखिरकार 7वीं और 8वीं प्लाटून में से कोई जीवित नहीं बचा।
युद्ध के दौरान मेजर शैतान सिंह भाटी लगातार पोस्टों के बीच सामंजस्य बना कर लगातार जवानों का हौसला बढ़ाते रहे। चूँकि वह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर बिना किसी सुरक्षा के जा रहे थे अतः वह गंभीर रूप से घायल हो गए। इस जंग में अधिकतर भारतीय जवान शहीद हो गए और कुछ जवान बुरी तरह घायल हो चुके थे। मेजर शैतान सिंह के पास अब कोई चारा नहीं था इसलिए वे चीनी सैनिकों पर टूट पड़े और उन्हें कई गोलियां लग गईं। खून से सने मेजर को दो सैनिक एक बड़ी बर्फीली चट्टान के पीछे ले गए। मेडिकल हेल्प वहां नहीं थी। इसके लिए उन्हें पहाड़ियों से नीचे उतरना था। लेकिन मेजर ने मना कर दिया।और इसके उलट उन्होंने सैनिकों को ऑर्डर किया उन्हें एक मशीन गन लाकर दो। उन्होंने मशीन गन को पैर से बंधवाया और रस्सी के सहारे मशीन गन चलाना शुरू कर दिया। इस युद्ध में 18 घंटे की युद्ध के दौरान तकरीब 1000 चीनी सैनिक को मार वीर गति को प्राप्त हो गए। इस युद्ध में भारत के 120में से 114 सैनिक शहीद हुए थे। वीरगति को प्राप्त होने के बाद इनके पार्थिव शरीर को जोधपुर लाया गया था और सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।



●तीन महीने बाद मिला था पार्थिव शरीर

     इस टुकड़ी के बारे में भारतीय सेना को कुछ पता ही नहीं लग पाया। तीन माह बाद क्षेत्र में बर्फ पिघलने पर एक चरवाहे ने दर्रे में बड़ी संख्या में सैनिकों के शव पड़े होने की सूचना सेना को दी। इस पर सेना की एक अन्य टुकड़ी वहां पहुंची। वहां का दृश्य देख वे सभी हतप्रद रह गए। सभी भारतीय जवान युद्ध की पोजिशन लिए हुए थे। किसी जवान का हाथ बन्दूक के ट्रिगर पर था तो किसी के हाथ में हथगोला। वहीं सामने करीब एक हजार चीनी सैनिकों के शव भी बर्फ में दबे मिले। चीनी सैनिकों के शवों की संख्या के आधार पर अनुमान लगाया गया कि यहां पर कितना भीषण युद्ध हुआ होगा। संख्या बल में कम होने के बावजूद भारतीय जवानों ने अपनी जान की बाजी लगा शत्रु सेना को आगे नहीं बढ़ने दिया।




●सम्मान

       मेजर शैतान सिंह भाटी के वीरता भरे देश प्रेम को सम्मान देते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1963 में उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया जो 18 नवम्बर 1962 से प्रभावी हुआ। उनके गांव का नाम बदल कर मेजर शैतान सिंह कर दिय गया। रेजांगला में असमरक बना है।




 


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