भारतीय तिरंगे का इतिहास

हमारे भारत का राष्ट्रीय ध्वज जिसमें मुख्य तीन रंग होने के कारण तिरंगा कहते हैं।
भारतीय तिरंगा प्रथम स्वतंत्रता दिवस के कुछ दिन पहले पिंगली बैंकेया द्वारा बनाया गया था। जिसे 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा में अपनाया गया।जिसमे तीन क्षैतिज पट्टियां क्रम: "केशरिया,सफेद और हरा" बीच के सफेद पट्टी पर अशोक चक्र होता है जो प्रतीक हैं।
○केसरिया पट्टी 
        भारतीय जवानों के ताकत, बलिदान और साहस का प्रतीक हैं।
○सफेद पट्टी
       शांति और सत्य का प्रतीक हैं।
○हरा पट्टी
       विकास और हरियाली को दर्शाता हैं।
○अशोक चक्र
        निरंतर विकास को दर्शाता हैं।

भारतीय तिरंगे लंबाई और चौड़ाई अनुपात 3:2 का होता हैं
अशोक चक्र को गहरे नीले रंग में रंगा जाता हैं।
21 फीट गुणा 14 फीट के झंडे पूरे देश में केवल तीन किलों के ऊपर फहराए जाते हैं। मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में ,कर्नाटक के नारगुंड किले में और महाराष्ट्र के पनहाले किले पर सबसे लम्बे झंडे को फहराया जाता है।

भारतीय तिरंगे का इतिहास 
    वर्ष 1857 में स्वतंत्रता के पहले संग्राम के समय भारत राष्ट्र का ध्वज बनाने की योजना बनी थी, लेकिन वह आंदोलन असमय ही समाप्त हो गया था। जिसके कारण यह योजना भी समाप्त हो गई।
भारत का पहला झंडा सन् 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। जो 7 अगस्त, 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में इसे कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था। ऊपर की ओर हरी पट्टी में आठ कमल थे और नीचे की लाल पट्टी सूरज और चाँद बनाए गए थे। बीच की पीली पट्टी पर वन्देमातरम् लिखा गया था। 
दूसरी बार झंडे को 1907 को पेरिस में मैडम कामा और उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। यह भी पहले ध्वज के समान था; सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था, किंतु सात तारे सप्तऋषियों को दर्शाते थे। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
 
तीसरी बार झंडे को 1917 में डॉ॰ एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान तृतीय चित्रित ध्वज को फहराया। इस ध्वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियाँ एक के बाद एक और सप्तऋषि के अभिविन्यास में इस पर सात सितारे बने थे। ऊपरी किनारे पर बायीं ओर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
चौथी बार झंडे को सन् 1931 में कांग्रेस के सत्र विजयवाड़ा में किया गया यहाँ आंध्र प्रदेश के पिंगली वैंकैया ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
पांचवी बार झंडे को सन् 1931 में तिरंगे ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया और इसे राष्ट्र ध्वज के रूप में मान्यता मिली।केसरिया, सफेद और हरा ,मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। यह भी स्पष्ट रूप से बताया गया था कि इसका कोई साम्प्रदायिक महत्त्व नहीं था।
छठी और आखिरी बार झंडे को 22 जुलाई सन् 1947 को संविधान सभा ने वर्तमान ध्वज को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले संविधान सभा ने राष्ट्रध्वज को संशोधित किया। इसमें चरखे की जगह अशोक चक्र ने ली जो कि भारत के संविधान निर्माता डॉ बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने लगवाया।
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