एक ऐसा जवान जो मरने के बाद भी भारतीय सीमा की सुरक्षा करता है?


हमने देवी देवताओं के मंदिर तो बहुत देखे होंगे लेकिन क्या आपने कभी किसी भारतीय जवान का मंदिर देखा है? नही न।
तो चलिए हम आपको बताते हैं। देश की राजधानी दिल्ली से तकरीबन 1500 km दूर सिक्किम के राजधानी गंगटोक में जेलेप दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच 14 हजार फीट की ऊंचाई पर बने इस मंदिर में भारतीय जवान के साथ दूर-दूर से लोग दर्शन करने पहुंचते हैं। सुनने में थोड़ा अजीब सा जरूर लग रहा होगा, लेकिन ये हकीकत है। कहा जाता है कि इस भारतीय सैनिक ने मृत्यु के बाद भी सेना की नौकरी नहीं छोड़ी। और केवल भारतीय सेना ही नहीं, चीनी सेना भी उनके सम्मान में शीश नवाती है। उनका नाम है। बाबा हरभजन सिंह जी हां।
बाबा हरभजन सिंह 30 अगस्त 1946 को गुजरांवाला पंजाब के सदराना गांव (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्में हरभजन सिंह को बचपन से ही, एक फौजी बनने की इच्छा थी । अपनी प्राथमिक शिक्षा वहीं के स्थानीय स्कूल से प्राप्त करने के बाद मार्च 1955 में, उन्होंने डी.ए.वी. हाई स्कूल, पट्टी से दसवीं की परीक्षा देने के बाद आर्मी की तैयारी शुरू कर दी। करीब एक साल बाद वर्ष 1966 को हरभजन सिंह भारतीय सेना के पंजाब रेजीमेंट में सिपाही के रूप में भर्ती हुए। जिसके बाद उन्हें Signal Core में शामिल किया गया। जहां 30 जून 1965 को हरभजन सिंह को एक कमीशन का कार्यभार सौंपा गया। वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिसके चलते उनका स्थानांतरण “18 राजपूत रेजिमेंट” में हुआ। इसके बाद 1968 में 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में तैनात थे। चार अक्टूबर 1968 को खच्चरों का काफिला ले जाते समय नाथुला के समीप उनका पैर फिसल गया और घाटी में गिरने से उनकी मौत हो गई। पानी का तेज बहाव उनके शरीर को बहाकर 2 km दूर ले गया। जब इस दुर्घटना की सुचना भारतीय सेना के अधिकारीयों को मिली, तभी उन्होंने हरभजन सिंह की तलाश करनी शुरू कर दी। जिसमें पांच दिन तक सर्च ऑपरेशन चला, फिर उन्हें लापता घोषित कर दिया गया। पांचवें दिन उनके एक साथी सिपाही प्रीतम सिंह को सपने में आकर हरभजन सिंह ने अपनी मृत्यु की जानकारी दी और बताया की उनका शव कहां पर है। अब बात ही कुछ ऐसी थी की लोगो को विश्वास krana 
कि प्रीतम सिंह के सपने में हरभजन सिंह आया और अपनी मृत्यु का कारण बताया । सेना में किसी ने भी प्रीतम सिंह की बातों पर यकीन नहीं किया और जब उनके शव का कोई पता नहीं मिलने पर सेना के कुछ अधिकारी हरभजन सिंह के बताए स्थान पर गए।
 
जहां उन्हें हरभजन सिंह का मृत देह मिला। जिसे देख सेना के अधिकारी आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने प्रीतम सिंह से माफ़ी मांगी और सम्मानपूर्वक हरभजन सिंह का अंतिम संस्कार किया। संस्कार के कुछ समय बाद, एक बार फिर हरभजन सिंह प्रीतम सिंह सपने में आए और अपनी समाधि बनाने की इच्छा व्यक्त की। जिसके चलते सेना के उच्च अधिकारियों ने गंगटोक में जेलेप दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच उनकी समाधि बनाई । विभिन्न सैनिक अधिकारियों के अनुसार कहा जाता है कि मृत्यु के बाद भी बाबा हरभजन सिंह अपनी ड्यूटी करते हैं और चीन की सभी गतिविधियों से नजर रख समय-समय पर सैनिकों को सतर्क करते रहते हैं। जिसके चलते हरभजन सिंह पर लोगों का इतना विश्वास बढ़ गया, की सेना द्वारा बाकी सभी की तरह हरभजन सिंह को भी वेतन, दो महीने की छुट्टी, इत्यादि सुविधाएं दी जाती थी। लेकिन अब वह रिटायर हो चुके हैं। जिसके चलते भारतीय सेना द्वारा उन्हें मरणोपरांत कैप्टन की उपाधि से सम्मानित किया।  
 मंदिर में बाबा का एक कमरा भी है, जिसमें प्रतिदिन सफ़ाई करके बिस्तर लगाया जाता है। बाबा की सेना की वर्दी और जूते रखे जाते हैं। कहते हैं कि रोज़ पुनः सफ़ाई करने पर उनके जूतों में कीचड़ और चद्दर पर सलवटे पाई जाती हैं।
चीनी सिपाहियों ने भी उनके घोड़े पर सवार होकर रात में पहरा देने की पुष्टि की है। आस्था का बात ये है कि जब भी 
भारत-चीन की सैन्य बैठक नाथुला में होती है तो उनके लिए एक ख़ाली कुर्सी रखी जाती है। इसी आस्था एवं अशरीर सेवा के लिए भारतीय सेना उनको सेवा में मानते हुए प्रत्येक वर्ष 15 सितम्बर से 15 नवम्बर तक की छुट्टी मंजूर करती है और बड़ी श्रद्धा के साथ स्थानीय लोग एवं सैनिक एक जुलुस के रूप में उनकी वर्दी, टोपी, जूते एवं साल भर का वेतन, दो सैनिकों के साथ, सेना की गाड़ी में नाथुला से न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन तक लाते हैं। वहाँ से डिब्रूगढ़-अमृतसर एक्सप्रेस से उन्हें जालंधर (पंजाब) लाया जाता है। यहाँ से सेना की गाड़ी उन्हें गाँव में उनके घर तक छोड़ने जाती है। वहाँ सब कुछ उनकी माता जी को सौंपा जाता है। फिर उसी ट्रेन से उसी आस्था एवं सम्मान के साथ उनको समाधि स्थल, नाथुला लाया जाता है। 
हरभजन सिंह जब तक जीवित थे तब तक डिब्रूगढ–अमृतसर
एक्सप्रेस से ही घर जाते थे। 
बाबा हरभजन सिंह के जीवन पर आधारित एक लघु फिल्म “प्लस माइनस” बनाई गई, जिसमें बहुचर्चित यूटूबर भुवन बाम व बॉलीवुड अभिनेत्री दिव्या दत्ता ने कार्य किया है।

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