अरूण जेटली

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी अरुण जेटली की पहचान एक विद्वान, वाकपटु, आर्थिक, कानूनी व राजनीतिक मुद्दों की गहराई तक समझ रखने वाले नेता की रही। छात्र राजनीति से सियासत में कदम रखने वाले जेटली ने अडिशनल सॉलिसिटर जनरल से लेकर देश के वित्त मंत्री तक की जिम्मेदारी संभाली। यूपीए शासन के दौरान बतौर नेता प्रतिपक्ष उन्होंने राज्यसभा में सत्ता पक्ष को अपने दमदार और तर्कपूर्ण भाषणों से अक्सर बैकफुट पर जाने को मजबूर किया। आर्थिक क्षेत्र में भी उन्होंने जीएसटी और दिवालिया कानून जैसे अहम मसलों को मजबूती से आगे बढ़ाया। 24 अगस्त 2022 को उनकी तीसरी पुण्य तिथि है।
तो आइए जानते है उनके बारे में।

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●प्रारंभिक जीवन
      अरुण जेटली का जन्म दिल्ली में पिता महाराज किशन जेटली और माता रतन प्रभा जेटली के घर 28 दिसंबर 1952 को हुआ जो बटवारे के बाद पाकिस्तान से भारत आए थे उनके पिता एक जानें–माने वकील थे। 
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर्स स्कूल, नई दिल्ली से 1957 से 69 की अवधि में पूर्ण की। उसके बाद उन्होंने 1973 में श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, नई दिल्ली से कॉमर्स में स्नातक की डिग्री पूरी की यहां वे कॉलेज डिबेटिंग टीम के कप्तान बन गए जिसने कई गोल्ड मेडल जीते थे । फिर 1977 में दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय से विधि की डिग्री प्राप्त की। छात्र के रूप में जेटली भाषण देने में कुशल थे. जेटली के स्कूली दोस्तों के मुताबिक स्कूल में इंजिनियर बनने का इरादा रखते थे लेकिन बड़े होकर इरादा बदल गया उन्होंने अपने कैरियर के दौरान, अकादमिक और पाठ्यक्रम के अतिरिक्त, प्रतियोगिताओं में अच्छे प्रदर्शन से विभिन्न सम्मानों को प्राप्त किया हैं। वो 1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संगठन के अध्यक्ष भी बने।

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●राजनीति में प्रवेश
    सत्तर के दशक में जेटली ने राजनीति में प्रवेश किया। देश में इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ गुजरात से शुरू हुआ छात्र आंदोलन देशभर के कोने कोने में फैल गया। 1971 में आरएसएस की छात्र इकाई एबीवीपी के नेता श्रीराम खन्ना से मिलने के बाद जेटली एबीवीपी से जुड़ गए। 1972 में जब श्रीराम खन्ना दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष बने, तो जेटली कॉलेज यूनियन के अध्यक्ष बने। 1973 में जेटली ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली विश्विद्यालय में वकालत की पढ़ाई शुरू की।
जेटली नेतागिरी के लिए प्रतिभाशाली थे क्योंकि भाषण देना अच्छे से जानते थे और पढ़े –लीखे होने के कारण राजनीतिक समझ भी अच्छी थी। 1973 में जेटली को उम्मीद थी कि उन्हें दिल्ली विश्विद्यालय छात्रसंघ का चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और एबीवीपी ने आलोक कुमार को मौका दे दिया। जेटली इसके बाद कुछ दिन के लिए कोपभवन में चले गए। कांग्रेस की विद्यार्थी इकाई एनएसयूआई के नेताओं ने इस नाराजगी को भांप कर जेटली को अपनी ओर करने की कोशिश की। 1974 का चुनाव आते-आते जेटली ने यूनिवर्सिटी में इतनी पकड़ बना ली थी कि वे किसी भी पार्टी से लड़कर जीत सकते थे। एबीवीपी ने स्थिति भांप कर उन्हें टिकट दिया और वे चुनाव जीत गए।
18 मार्च 1974 को जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना में छात्र आंदोलन की शुरूआत हुई।
  जेटली भी इंदिरा गांधी के खिलाफ शुरू हुए जेपी आंदोलन से जुड़ गए। उन्हें जेपी आंदोलन के दौरान बनी कमिटी फॉर यूथ एंड स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन का संयोजक बनाया गया। 26 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा के बाद पुलिस बाकी विपक्षी नेताओं की तरह जेटली की तलाश करते हुए उनके घर पहुंची।
तो जेटली के पिता, पुलिस से कानूनी बहस करने लगे, जिसका लाभ उठाकर जेटली वहां से निकल गए अगले दिन जेटली ने करीब 200 लोगों को इकट्ठा कर गिरफ्तारी दे दी। आपातकाल की वजह से सारे विरोध प्रदर्शन बंद थे. ऐसे में 200 लोगों के साथ गिरफ्तारी को काफी सुर्खियां मिलीं। वे करीब 19 महीने तक अंबाला और तिहाड़ जेल में रहे।
इन्हीं 19 महीनो के दरमियान जेटली की मुलाकात अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और संघ के बड़े नेता नानाजी देशमुख जैसे कई सारे बड़े नेताओं से हुई। जनवरी 1977 में जेटली जब जेल से रिहा हुए। तो इतने नेताओं से पहचान जेल में हो गई थी जो जेटली के करियर को नई ऊंचाइयों पर ले गया और उन्हें एबीवीपी का राष्ट्रीय सचिव बना दिया गया। मार्च 1977 में उन्हें नई बनी जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य बनाया गया। जनता पार्टी ही आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी बनी। 

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●अरूण जेटली शादी 
      अरूण जेटली के शादी जम्मू कश्मीर के कांग्रेसी वित्त मंत्री गिरधारी लाल डोगर के बेटी संगीता डोगर से 1979 में हुई थी।
इनकी शादी में अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और इंदिरा गांधी ने भी शिरकत की थी। अरूण जेटली और संगीता जेटली के दो बच्चे, बेटा रोहन जेटली और बेटी सोनाली जेटली है।
●बीपी सिंह सरकार
     1980 में कांग्रेस ने फिर से सरकार बना ली। जेटली ने अपने वकालत को साबित करते हुए। राम जेठमलानी के सहायक बन और बीजेपी से जुड़े नेताओं के मुकदमे लड़ने लगे। 1984–85 के चुनाव में हार के बाद बीजेपी ने अगली पीढ़ी के नेताओं की ओर भी देखना शुरू किया जिनमें प्रमोद महाजन और अरुण जेटली शामिल थे । जेटली की बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से अच्छी दोस्ती होने लगी थी। 1989 में अरुण जेटली वीपी सिंह के प्रचार अभियान में काफी सक्रिय रहे ।वीपी सिंह के प्रचार अभियान का जिम्मा जेटली को ही दिया गया था।
वीपी सिंह की सरकार बनी तो जेटली को महज 37 साल की उम्र में उन्हें अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (महान्ययाभिकर्ता) बना दिया गया। जनवरी 1990 में बोफोर्स घोटाले की जांच के लिए वीपी सिंह ने एक जांच दल का गठन कर स्वीडन और स्विट्जरलैंड भेजा। इस दल में सीबीआई और दूसरी एजेंसियों के अधिकारियों के साथ जेटली भी शामिल थे। जेटली मीडिया में इस जांच दल का हिस्सा होने के चलते छा गए थे जेटली का कद एक वकील के रूप में बड़ा होने लगा था। 

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●लाल कृष्ण आडवाणी
     जब लाल कृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के लिए अपनी रथयात्रा शुरू की तो उसके लिए प्रेस मैनेजमेंट का काम जेटली देखा करते थे। वीपी सिंह की सरकार गिरने के छह महीने बाद उन्होंने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के पद से इस्तीफा दे दिया. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद जेटली पार्टी में बने रहे लेकिन सार्वजनिक रूप से इस मुद्दे पर पार्टी का बचाव नहीं करते थे। लेकिन इसी मामले में अदालत के अंदर वे आडवाणी के वकील बने और आडवाणी का बचाव किया। अब वे आडवाणी के और प्रिय हो गए। उन्हें बीजेपी का महासचिव बना दिया गया। 
○अटल बिहारी वाजपेई
     1999 के आम चुनाव से पहले की अवधि के दौरान जेटली भाजपा के प्रवक्ता बने।
1999 में, भाजपा की वाजपेयी सरकार के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन सरकार में उन्हें 13 अक्टूबर 1999 को सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री नियुक्त किया गया। दिसंबर 1999 में उन्हें विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी नियुक्त किया गया। अप्रैल 2000 में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। उन्होंने 23 जुलाई 2000 को कानून, न्याय और कंपनी मामलों के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में राम जेठमलानी के इस्तीफे के बाद कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला। पुनः जनवरी 2003 से मई 2004 तक कानून, न्याय और कंपनी मामलों के राज्य मंत्री बने। अप्रैल 2006 में राज्यसभा के लिए दूसरी बार निर्वाचित हुए।
अप्रैल 2012 से मई 2014 तक राज्य में विपक्ष के नेता चुने गए।

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○मोदी सरकार
सीएम बनने से पहले नरेंद्र मोदी बीजेपी के महासचिव और प्रवक्ता हुआ करते थे। मोदी और अरुण जेटली की दोस्ती बहुत गहरी थी। 2002 में गुजरात दंगों के बाद जब वाजपेयी मोदी को पद से हटाना चाहते थे तब इसका विरोध करने वालों में आडवाणी के साथ जेटली भी शामिल थे।
2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की ओर बढ़ने की पृष्टभूमि तैयार होने लगी. यहां जेटली ने अच्छा संतुलन बनाया। भविष्य को देखते हुए उन्होंने मोदी का साथ दिया। जेटली दिल्ली में इतने बड़े नेता थे कि वे मीडिया से लेकर लोगों तक को मैनेज कर लेते थे। मोदी को एक ऐसे साथी की बेहद जरूरत थी।
2014 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली से मोदी का सबसे ज्यादा साथ अरुण जेटली ही दे रहे थे। मोदी उन्हें लोकसभा से लाना चाहते थे जिससे बड़ा पद देने में आसानी रहे इसके लिए सुरक्षित सीट की तलाश थी 2004 से लगातार सांसद बने आ रहे पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू का टिकट काटकर जेटली को अमृतसर भेजा गया। लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जेटली को हरा दिया। मोदी पर इस हार का कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने अरुण जेटली को 27 मई 2014 को वित्त, कॉर्पोरेट अफेयर्स और रक्षा मंत्रालय का दायित्व सौंपा। नवंबर 2014 में रक्षा की जगह उन्हें वित्त के साथ सूचना प्रसारण मंत्री बना दिया गया.
नरेंद्र मोदी की सरकार पर जब भी किसी विवाद का साया आता तो जेटली उसे रोकने के लिए सबसे आगे खड़े होते। नोटबंदी जैसे बड़े और अस्त व्यस्त कर देने वाले निर्णय के बाद जेटली ने लगातर दो महीने तक मीडिया में सरकार का पक्ष रखा। अर्थव्यवस्था के सवाल पर जेटली लगातार मीडिया से मुखातिब होते रहते थे. 2018 जब राफेल मुद्दे ने तूल पकड़ना शुरू किया तो अरुण जेटली ने ही आगे होकर सारे आरोपों के जवाब देते थे। राजनीति अपनी गति से चल रही थी लेकिन जेटली का स्वास्थ्य उसी गति से गिरने लगा था। वैसे भी जुलाई 2005 में हार्ट अटैक के बाद जेटली की बाईपास सर्जरी हो चुकी थी। इसके बाद मई 2018 में दिल्ली के एम्स अस्पताल में उनकी किडनी का ऑपरेशन हुआ। इस ऑपरेशन के बाद कुछ महीनों तक वे राजनीति से दूर रहे। ठीक होने के बाद कुछ दिन उन्होंने राज्यसभा की कार्यवाही में भी हिस्सा लिया। लेकिन इस बीमारी के बाद एक दूसरी बीमारी उनका इंतजार कर रही थी जो जान लेकर ही पीछा छोड़ने वाली थी। जनवरी 2019 में उन्हें सॉफ्ट टिश्यू सारकोमा डायग्नोस हुआ। जिससे जेटली राजनीति से दूर हो गए। 9 अगस्त को उनकी हालत ज्यादा बिगड़ने के बाद एम्स में भर्ती करवाया गया. 24 अगस्त को 12 बजकर 7 मिनट पर वहां अरुण जेटली की सांसे रुक गईं.


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