कल्याण सिंह और राम मंदिर

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, राजस्थान और हिमाचल के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह (बाबू जी) की आज 21 अगस्त 2022 को पहली पुण्यतिथि है इस मौके पर लखनऊ में सीएम योगी आदित्यनाथ ने उनकी 9 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया। 2024 चुनाव से पहले यूपी के 9 जिलों लखनऊ के बाद "अलीगढ़, एटा, कासगंज, बुलंदशहर, मैनपुरी, कन्नौज, कानपुर और अयोध्या में उनकी मूर्तियां लगाई जाएंगी। इन जिलों में कल्याण सिंह का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है" में उनकी 25 मूर्तियां लगाने की तैयारी है। इसके अलावा, 23 अगस्त को कल्याण सिंह के गृह जनपद अतरौली में भी कार्यक्रम रखा गया है। कल्याण सिंह राम मंदिर आंदोलन के सबसे बड़े चेहरों में से एक थे।
तो आज हम आपको बताते हैं कल्याण सिंह का राजनीतिक सफर कैसा रहा।
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○प्रारंभिक जीवन
    कल्याण सिंह का जन्म 6 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री तेजपाल लोधी और माता का नाम श्रीमती सीता देवी था। प्रारंभिक शिक्षा ए.एल.टी. से 8वीं पास हैं। डीएस डिग्री कॉलेज, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में शिक्षित ।
○प्रारंभिक राजनीतिक सफर
     कल्याण सिंह जब स्कूल में थे, उस वक्त ही आरएसएस के सदस्य बन गए थे। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जनसंघ में आए। कल्याण सिंह आपने गृह नगर अतरौली से 35 वर्ष के उम्र में पहली बार जनता पार्टी से 1967 में पहला चुनाव जीतने के बाद 1980 तक उन्हें कोई हरा नहीं सका। लेकिन 1980 के चुनाव में जनता पार्टी टूट गई तो कल्याण सिह को हार का सामना करना पड़ा।
दरअसल, कल्याण सिंह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जनसंघ में आए थे। जब जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ और 1977 में उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हे रामनरेश यादव की सरकार में उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया । 1980 में कल्याण पहली बार चुनाव हारे ।

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○भाजपा का गठन
कल्याण सिंह के चुनाव हारने के बाद उसी साल 6 अप्रैल 1980 को भाजपा का गठन हुआ तो कल्याण सिंह को पार्टी का प्रदेश महामंत्री बनाने के साथ उन्हें प्रदेश पार्टी की कमान भी दी गई।
○राम मंदिर आंदोलन और मंडल कमंडल के राजनीति
      जब समाजवादी नेता अन्य पिछड़ों की राजनीति कर रहे थे, तभी 1989-90 के दौर में ही भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर के लिए आंदोलन को हवा दी थी. यानी ‘कमंडल’ की राजनीति. चूंकि केंद्र की सत्ता तक पहुंचने के लिए उत्तर प्रदेश में असर बढ़ाना जरूरी होता है, इसलिए. इस आंदोलन को 1990 में तब सबसे ज्यादा समर्थन मिला, जब अयोध्या में कारसेवकों को रोकने के , लिए तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने सुरक्षा बलों को गोली चलाने का आदेश दिया. जिससे मुलायम सिंह अपने यादव वर्गों के साथ ही मुस्लिम समुदाय के चहेते हो गए. और इधर भाजपा को हिंदू समुदाय को अपने पक्ष में एकजुट करने का आधार भी मिला. भाजपा को अब लगा कि सिर्फ धार्मिक आंदोलन आधारित राजनीति लंबे समय का समाधान नहीं है. इसलिए भाजपा ने‘कमंडल+मंडल' का समीकरण बिठाया. उत्तर प्रदेश में मंदिर आंदोलन का प्रमुख चेहरा कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया, जो अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) की लोधी जाति से थे.जिससे कल्याण सिंह की अगुवाई में भाजपा ने 1991 में पूरे बहुमत से सरकार बनाई. और कल्याण सिंह पहली बार 24 जून 1991 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
○बाबरी मस्ज़िद के ढांचे का गिरना
       1991 में कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री बनते ही अयोध्या में बाबरी मस्जिद के पास 2.77 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर उत्तर प्रदेश सरकार ने पर्यटन निर्माण किया के लिए प्रत्यक्ष रूप से खरीदी थी।
बाद में कल्याण सिंह ने उस जमीन पर हिंदुओ को धार्मिक अनुष्ठान करने की अनुमति दे दी। 
बाबरी मस्ज़िद के घटना को भांपते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कल्याण सिंह से जवाब मांगा। जिसमे कल्याण सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय को विश्वास दिलाया कि बाबरी मस्ज़िद को कुछ नहीं होगा।
धीरे धीरे कई पुजारी अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में आंदोलन करने लगा गए ।
6 दिसंबर 1992 को RSS और उनके सहयोगियों ने मिलकर अयोध्या में राम जन्म भूमि की जगह कारसेवा का आयोजन किया। जिसमे गुजरात, राजस्थान,महाराष्ट्र से 150000 कारसेवकों का शामिल हुए थे।
इस कारसेवा के दौरान भाजपा के नेता मुरली मनोहर जोशी और ऊमा भारती के साथ लाल कृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज नेता शामिल थे। लेकिन आपे से बाहर होकर हिंदू संगठनों ने पुलिस बैरियर तोड़कर मस्जिद पर हमला कर दिया। और कुछ ही समय में बाबरी ढांचे को गिरा दिया। कल्याण सिंह ने गोली चलाने से मना कर दिया।
 बाबरी विध्वंस के कुछ ही घंटो बाद कल्याण सिंह ने अपने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। केंद्र सरकार ने देरी न करते हुए यूपी के भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया।
बाबरी ढांचे के ढह जाने के बाद कल्याण सिंह पर न्यायालय की अवमानना का केस में उन्हे एक दिन की जेल के साथ ₹20,000 का जुर्माना भी लगा ।
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○दूसरी बार मुख्यमंत्री 
      बाबरी विध्वंस के बाद जब 1993 में फिरसे चुनाव हुए जिसमे भारतीय जनता पार्टी ने सबसे बड़े दल के रूप में 177 सीटें जीती जिसमें कल्याण सिंह अत्रौली और कासगंज से विधायक निर्वाचित हुये। लेकिन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनो ने मिलकर मायावती को मुख्यमंत्री बनाया। फिर वो समय आया जब बीएसपी ने सपा से समर्थन वापस ले लिया।
21 अक्टूबर 1997 को बहुजन समाज पार्टी ने मुलायम सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। कल्याण सिंह पहले से ही कांग्रेस विधायक नरेश अग्रवाल के सम्पर्क में थे और उन्होंने तुरन्त शीघ्रता से नयी पार्टी लोकतांत्रिक कांग्रेस का घटन किया और 21 विधायकों का समर्थन दिलाया। इसके लिए उन्होंने नरेश अग्रवाल को ऊर्जा विभाग का कार्यभार सौंपा। कल्याण सिंह 12 नवंबर 1999 तक मुख्यमंत्री रहे।
दिसंबर 1999 मे कल्याण सिंह ने कुछ मतभेदों की वजह से भाजपा छोड़ दी। साल 2004 में एक बार फिर से भाजपा के साथ राजनीति से जुड़ गए।
2004 में उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार के रूप में बुलंदशहर से विधायक के लिए चुनाव लड़ा। 20 जनवरी 2009 में एक बार फिर उन्होंने भाजपा छोड़ दिया और खुद एटा लोकसभा चुनाव के लिए निर्दलीय खड़े हुए और जीते भी ।
○राज्यपाल का सफर
    कल्याण सिंह ने 4 सितम्बर, 2014 को राजस्थान में राज्यपाल के पद की शपथ ली साथ ही उन्होंने 2015 में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में अतिरिक्त कार्यभार भी संभाला 8 सितंबर 2019 तक राज्यपाल रहे।
उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान राज्यपाल के आगे लगने वाला महामहिम शब्द हटवाकर इसकी जगह माननीय शब्द करवा दिया था।
राज्यपाल को जयपुर से बाहर जाने पर दिया जाने वाला गार्ड ऑफ ऑनर भी उन्होंने बंद करवा दिया। विश्वविद्यालयों में 26 साल बाद दीक्षांत समारोह हर वर्ष करवाने की शुरुआत भी उन्होंने की।
साथ ही दीक्षांत समारोह में गाउन पहनना बंद करवाकर उसकी जगह परम्परागत भारतीय पोशाक पहनना शुरू करवाया।
कल्याण सिंह का 89 साल की उम्र में 21 अगस्त 2021 को लखनऊ के पीजीआई में निधन हो गया।  
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