जयप्रकाश नारायण और सम्पूर्ण आंदोलन

स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। उन्हें 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है । इन्दिरा गांधी को पदच्युत करने के लिये उन्होने 'सम्पूर्ण क्रांति' नामक आन्दोलन चलाया। वे समाज-सेवक थे, जिन्हें 'लोकनायक' के नाम से भी जाना जाता है। 1998 में उन्हें मरणोपरान्त भारत रत्न सम्मनित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें समाजसेवा के लिए 1965 में मैगससे पुरस्कार ( एशिया का नोबेल पुरस्कार ) प्रदान किया गया था। यह रमन मैगसेसे पुरस्कार फाउन्डेशन द्वारा फ़िलीपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रमन मैगसेसे की याद में दिया जाता है। पटना के हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया है। दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल 'लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल' भी उनके नाम पर है।

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○जन्म और विवाह
    जयप्रकाश नारायण का जन्म बिहार के सारण जिला के सिताब दियारा में 11 अक्टूबर 1902 को एक चित्रगुप्तवंशी परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम देवकी और माता का नाम फुलरानी देवी था। इनका ग्राम उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से जुड़ा हुआ है। जिससे बलिया के लोग बाबू जयप्रकाश नारायण को अपने बलिया का निवासी मानते हैं। इनका विवाह बिहार बृज किशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती के साथ इनका विवाह अक्टूबर 1920 में हुआ।

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○शिक्षा
     इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में puri करने के बाद 1922 में उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गये, जहाँ उन्होंने 1922-1929 के बीच कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय बरकली, विसकांसन विश्वविद्यालय में समाज-शास्त्र का अध्ययन किया। उन्होंने खेतों, कम्पनियों, रेस्त्रा में काम पढ़ाई के खर्चों का वहन किया और उन्होंने एम॰ ए॰ की डिग्री हासिल की। उनकी माताजी की तबियत ठीक न होने के कारण वे भारत वापस आ गये और पी० एच० डी० पूरी न कर सके।
○स्वतंत्रता संग्राम में शामिल
  जयप्रकाश नारायण पटना में अपने विद्यार्थी जीवन में ही डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद और सुप्रसिद्ध डॉ॰ अनुग्रह नारायण सिन्हा द्वारा स्थापित बिहार विद्यापीठ में शामिल हो, स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। 1929 में जब वे अमेरिका से लौटे, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तेज़ी पर था। उनका सम्पर्क जवाहर लाल नेहरु से हुआ। 1932 में गांधी, नेहरु और अन्य महत्त्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओं के जेल जाने के बाद, उन्होंने भारत में अलग-अलग हिस्सों में संग्राम का नेतृत्व किया । अन्ततः उन्हें भी मद्रास में सितम्बर 1932 में गिरफ्तार कर, नासिक के जेल में भेज दिया गया। यहाँ जेल में उनकी मुलाकात मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन, एन० सी० गोरे, अशोक मेहता, एम० एच० दाँतवाला, चार्ल्स मास्कारेन्हास और सी० के नारायण स्वामी जैसे उत्साही कांग्रेसी नेताओं से हुई।

○सीएसपी का गठन
         जेल में इनके द्वारा की गयी चर्चाओं ने कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी (सी० एस० पी०) को जन्म दिया। सी० एस० पी० समाजवाद में विश्वास रखती थी। जब कांग्रेस ने 1934 में चुनाव हिस्सा लेने का फैसला किया तो जे० पी० और सी० एस० पी० ने इसका विरोध किया।

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○आजाद दस्ते का गठन
    1939 में उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोक आन्दोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने अंग्रेज सरकार को किराया और राजस्व रोकने के अभियान चलाये। टाटा स्टील कम्पनी में हड़ताल कराके यह प्रयास किया कि अंग्रेज़ों को इस्पात न पहुँचे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 9 महीने की कैद की सज़ा सुनाई गयी। जेल से छूटने के बाद उन्होंने गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच सुलह का प्रयास किया। उन्हें बन्दी बनाकर मुम्बई की आर्थर जेल और दिल्ली की कैम्प जेल में रखा गया। 1942 भारत छोडो आन्दोलन के दौरान वे हजारी बाग जेल से फरार हो गये। 
उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सुभाष चन्द्र बोस का समर्थन कर नेपाल में आज़ाद दस्ते का गठन किया और उसे प्रशिक्षण दिया। उन्हें एक बार फिर पंजाब में चलती ट्रेन में सितम्बर 1943 में गिरफ्तार कर लिया गया। 16 महीने बाद जनवरी 1945 में उन्हें आगरा जेल में स्थान्तरित कर दिया गया। इसके बाद गांधी जी ने यह साफ कर दिया था कि डॉ॰ राम मनोहर लोहिया और जे० पी० की रिहाई के बिना अंग्रेज सरकार से कोई समझौता नहीं होगा। दोनों को अप्रैल 1946 को छोड़ दिया गया।

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○आजाद भारत के बाद
नेहरू के कहने पर जेपी 1948 में कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया। कुछ समय बाद जेपी को एहसास हुआ कि कांग्रेस के शासन से देश का भला होने वाला नहीं है। उसी समय गांधीवादी दल के साथ मिलकर समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना। जेपी ने 1950 के दशक में 'राज्यव्यवस्था की पुनर्रचना' नामक एक पुस्तक लिखी। इस 'राज्य व्यवस्था की पुनर्रचना' नामक पुस्तक में उन्होंने नेहरू की तत्कालीन शासन व्यवस्था की खामियों को न केवल इंगित किया बल्कि देश के नवनिर्माण ढांचे का वैचारिक आधार भी प्रस्तुत किया। बताया जाता है कि उनकी इसी पुस्तक से प्रभावित होकर जवाहरलाल नेहरू ने मेहता आयोग का गठन किया। लोकनायक को सत्ता का मोह नहीं था, यही कारण था कि नेहरू की बारबार कोशिश के बावजूद वह उनके मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए। 19 अप्रील, 1954 को गया, बिहार में आचार्य विनोबाभा भावे से प्रभावित हुए और उनके 'सर्वोदय आंदोलन' से जुड़ भूदान के आह्वान का पूरा समर्थन किया। उन्होंने लंबे वक्त के लिए ग्रामीण भारत में इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। 1957 में उन्होंने लोकनीति के पक्ष में राजनीति छोड़ने का निर्णय लिया।




○सम्पूर्ण आंदोलन
1960 के दशक के अंतिम भाग में वे राजनीति में पुनः आगये। इंदिरा गांधी के शासन के दौरान देश महंगाई समेत कई अन्य मुद्दों को लेकर जूझ रहा था और लोगों के मन में इंदिरा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार को लेकर गुस्सा था। उस वक्त जयप्रकाश नारायण ने सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया और उन्होंने इंदिरा गांधी को पत्र लिखा और देश के बिगड़ते हालात के बारे में बताया। जयप्रकाश नारायण के इस पत्र से राजनीतिक जगत में हंगामा खड़ा हो गया था, क्योंकि पहली बार किसी ने इंदिरा गांधी के खिलाफ सीधे आवाज उठाई थी। साथ ही उन्होंने सांसदों को पत्र लिखकर लोकपाल बनाने और लोकायुक्त को नियुक्त करने की मांग की। साथ ही नारायण ने भष्ट्राचार के खिलाफ बनाई गई कमेटी की आवाज दबाने का आरोप भी इंदिरा गांधी पर लगाया था.
 इंदिरा गांधी ने राज्यों की कांग्रेस सरकारों से चंदा की मांग की। इस दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चीमन भाई से भी 10 लाख रुपये की मांग की थी और कोष बढ़ाने के लिए कई वस्तुएं के दाम बढ़ा दिए गए। जिसके बाद प्रदेश में आंदोलन हुए।इस दौरान 24 जनवरी 1974 मुख्यमंत्री के इस्तीफे की तारीख तय कर दी गई. लेकिन चीमन भाई के रवैये से आंदोलन और भड़क गया. उसके बाद जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन का समर्थन किया, जिसके बाद उन्हें गुजरात बुलाया गया. 
जयप्रकाश नारायण के गुजरात जाने से पहले उन्होंने राज्यपाल के जरिए अपने हाथ में सत्ता रखने की कोशिश की किंतु 9 फरवरी 1974 को इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण के गुजरात आने से दो दिन पहले ही चिमनभाई से इस्तीफा दिलवा कर गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। उसके बाद मोरारजी देसाई ने नारायण के साथ दोबारा चुनाव करवाने की मांग की साथ ही यह आंदोलन देश के अन्य राज्यों में भी फैलने लगा उसके बाद रेलवे के लाखों कर्मचारी हड़ताल पर चले गए, जिससे इंदिरा गांधी के सामने दिक्कत खड़ी होने लगी कि आखिर पहले किससे निपटा जाए?
8 अप्रैल 1974 को जयप्रकाश नारायण ने विरोध के लिए जुलूस निकाला, जिसमें इंदिरा गांधी के खिलाफ आक्रोशित लाखों लोगों ने भाग लिया और खुद जयप्रकाश नारायण ने इसकी अगुवाई की थी। जयप्रकाश नारायण के इस आंदोलन से इंदिरा गांधी के नीचे से सत्ता की जमीन खिसकने लगी और बाद में इंदिरा गांधी को विरोध का इतना सामना करना पड़ा कि उनके हाथ में सत्ता ज्यादा वक्त नहीं बची।
5 जून 1974 को जेपी ने गांधी मैदान में तकरीबन 5 लाख लोगो के सम्म्छ सम्पूर्ण आंदोलन ऐलान कर दिया । जिसमे हर घर से नवजवान शामिल थे
लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान, जॉर्ज फर्नांडीज, मधु लिमए जैसे नेता उनके साथ थे। जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी सरीखे नेता भी जेपी के आंदोलन में शामिल हुए। इसी माहौल में जयप्रकाश नारायण के साथ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर भी जुड़े।

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○जेपी आंदोलन
18 मार्च 1974 के दिन विधान मंडल के सत्र की शुरुआत होने वाली थी। राज्यपाल दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करने वाले थे।

वहीं पटना के छात्र आंदोलनकारियों की योजना थी कि वे राज्यपाल को विधान मंडल भवन में जानें रोकेंगे। वो उनका घेराव करेंगे, लेकिन इस योजना का पता लगने के कारण सत्ताधारी विधायक सुबह छह बजे ही विधान मंडल भवन में आ गए। उधर प्रशासन राज्यपाल आर. डी. भंडारे को किसी भी कीमत पर विधान मंडल भवन पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे।
वहीं छात्रों ने राज्यपाल की गाड़ी को रास्ते में रोक लिया। पुलिस प्रशासन ने छात्रों और युवकों को रास्ते से हटाने के लिए निर्ममतापूर्वक लाठियां चलाईं। तब छात्रों और युवकों का नेतृत्व करने वालों में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव सहित कई लोग जुटे थे। इसमें कई लोगों को चोटें आईं। वहीं, पुलिस के लाठी चार्ज से लोगों में गुस्सा फैल गया। बेकाबू भीड़ को काबू करना मुश्किल हो गया था।
अराजक तत्व आंदोलन में घुस गए, छात्र नेता कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे थे। इस घटना में कई छात्र मारे गए फिर जेपी को आंदोलन की कमान संभालने की मांग की गई. हालांकि जेपी ने आंदोलन की कमान संभालने से पहले कहा कि इस आंदोलन में कोई भी व्यक्ति किसी भी पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं होना चाहिए।
उसके बाद राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए छात्रों ने भी इस्तीफा देकर जेपी के साथ जाने का फैसला किया। इसमें कांग्रेस के भी कई छात्र शामिल थे और सभी छात्र बिहार छात्र संघर्ष समिति के बैनर तले आंदोलन में कूद गए। इसके बाद जेपी ने अपने हाथ में आंदोलन की कमान ले ली और बिहार के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर से इस्तीफे की मांग की। इसे जेपी आंदोलन का नाम दिया गया।


○आपातकाल
सम्पूर्ण आंदोलन के बीच ही। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी को चुनावी कानूनों के उल्लंघन का दोषी पाया और उनके चुनाव को रद्द कर दिया। इसके बाद जेपी ने इंदिरा गांधी से इस्तीफा मांग लिया, लेकिन वो इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं। अदालत से इंदिरा को थोड़ी राहत तो मिली लेकिन जेपी की तरफ से उनके लिए कोई राहत नहीं थी 25 जून 1975 को जेपी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली की जिसमे तकरीबन 1लाख पब्लिक जुटी हुई थी।
अपने खिलाफ जन आंदोलनों और जेपी के तेवर से घबराई, इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को इमरजेंसी की घोषणा कर दी। विरोध कर रहे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। जेपी समेत करीब 600 नेताओं को जेल में डाल दिया गया। इसके बाद इंदिरा गांधी ने 21 मार्च 1977 में आपातकाल को खत्म करते हुए आम चुनावों की घोषणा कर दी। इस चुनाव में इंदिरा गांधी की पार्टी कांग्रेस को प्रदर्शन बहुत ही खराब और वह सत्ता से बाहर हो गई। यह वही समय था जब पहली बार देश में गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी।
8 अक्टूबर 1979 जयप्रकाश नारायण खराब सेहत के कारण परलोक सिधार गए।

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