गुरु अर्जुन देव जी द्वारा गुरुग्रंथ साहिब का संपादन


सिख धर्म के पांचवे गुरु और गुरु ग्रंथ साहिब के संपादक
है गुरु अर्जुन देव। सिख गुरु में शाहिद होने वाले पहले गुरु है अर्जुन देव। 28 अगस्त 2022 को अमृतसर गोल्डन टेंपल में गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। जिसमे 115 किस्म के 110 टन फूलों को 300 कारीगरों द्वारा सजाया जा रहा हैं।
आइए जानते हैं गुरु अर्जुन देव जी ने गुरु ग्रंथ साहिब की रचना कैसे किए।

●गुरु अर्जुन देव जी का जन्म
     गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल सन् 1563 में सिख धर्म के चौथे धर्म गुरु, गुरु रामदास जी और माता बीबी भानी जी के यहां वर्तमान अमृतसर में हुआ था। गुरु अर्जुन देव जी के नाना गुरु अमरदास जो सिख धर्म के तीसरे धर्म गुरु थे। 
गुरु अर्जुन देव जी का पालन-पोषण उनके नाना गुरू अमरदास जी जैसे गुरू तथा बाबा बुड्ढा जी जैसे महापुरूषों की देख-रेख में हुआ था। उन्होंने गुरू अमरदास जी से गुरमुखी की शिक्षा ली थी, जबकि गोइंदवाल साहिब जी की धर्मशाला से देवनागरी, पंडित बेणी से संस्कृत तथा अपने मामा मोहरी जी से गणित की शिक्षा प्राप्त की थी। इसके अलावा उन्होंने अपने मामा मोहन जी से " ध्यान लगाने” की विधि सीखी थी।

●गुरु अर्जुन देव जी का विवाह
        अर्जुन देव जी का विवाह सन 1579 ई. में मात्र 16 वर्ष की आयु में जालंधर जिले के साहिब गांव में कृष्णचंद की बेटी माता “गंगा जी" के साथ हुआ था। इनके पुत्र का नाम हरगोविंद सिंह था, जो सिखों के छठे गुरू बने।

●गुरु पद की प्राप्ति
      अर्जुन देव के गुरु उनके नाना सिख धर्म तीसरे गुरु "गुरु अमरदास जी थे। जिससे उनमें वो सारे गुणों संचार थे। जो एक सिख गुरु बनने के लिए चाहिए।
अर्जुन देव जी शिरोमणि, सर्वधर्म समभाव के प्रखर पैरोकार होने के साथ-साथ मानवीय आदर्शों को कायम रखने के लिए आत्म बलिदान करने वाले एक महान आत्मा थे।
अर्जुन देव जी की निर्मल प्रवृत्ति, सहृदयता, कर्तव्यनिष्ठता तथा धार्मिक एवं मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण भावना को देखते हुए गुरु रामदासजी ने 1581 में पांचवें गुरु के रूप में उन्हें गुरु गद्दी पर सुशोभित किया।
अपने धर्म कार्यों के निर्वाह के लिए सिखों की कमाई में से दशमांश लेने की मर्यादा कायम की। सन् 1588 में सीखो के चौथे गुरु रामदास द्वारा निर्मित श्री अमृत सरोवर में हरि मंदिर की नींव रखी। यह मंदिर अब 'स्वर्ण मंदिर' के नाम से प्रसिद्ध है।

●गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन
गुरु अर्जुन देव जी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य था आदिग्रंथ यानी 'गुरु ग्रंथ साहिब' का लिपिबद्ध करना।उन्होंने अपने पहले चारों गुरुओं की पवित्र वाणी को इकट्ठा किया और भाई गुरदास जी के माध्यम से चारों गुरुओ और स्वयं की वाणी को लिपिबद्ध करवाया। गुरुग्रन्थ साहिब जी में सिख गुरुओं के अलावा 30 अन्य सन्तो और अलग धर्म के महापुरुषों की वाणी भी सम्मिलित है। जो सन् 1603 को शुरू होकर 1430 पन्ने वाले आदिग्रंथ का पहला प्रकाश 28 अगस्त 1604 को हरिमंदिर साहिब अमृतसर में हुआ था। सन 1705 में दमदमा साहिब में गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु तेगबहादुर जी के 116 शब्द जोड़कर इसको दशम गुरु गोबिंद सिंह ने हजूर साहिब में फरमान जारी किया था, "सब सिखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रंथ"। अपना जीवन सिख धर्म की सेवा को समर्पित करने वाले बाबा बुड्ढा जी इस ग्रंथ के पहले ग्रंथी बने । श्री गुरू ग्रंथ साहिब में कुल 5894 शब्द हैं जिनमें से 2216 शब्द श्री गुरू अर्जुन देव जी के हैं, जबकि अन्य शब्द भक्त कबीर, बाबा फरीद, संत नामदेव, संत रविदास, भक्त धन्ना जी, भक्त पीपा जी, भक्त सैन जी भक्त भीखन जी, भक्त परमांनंद जी, संत रामानंद जी के हैं. इसके अलावा सत्ता, बलवंड, बाबा सुंदर जी तथा भाई मरदाना जी व अन्य 11 भाटों की बाणी भी गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है। 
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●अकबर
       गुरु ग्रंथ साहिब जी का संपादन के वक्त कुछ अराजक तत्वों ने अकबर से शिकयत कि इस ग्रंथ में इस्लाम के विरुद्ध लिखा गया है। लेकिन बाद में जब अकबर को गुरूवाणी की महानता का पता चला, तो उसने भाई गुरदास एवं बाबा बुढ्ढा के माध्यम से 51 मोहरें भेंट कर खेद प्रकट किया था।

●गुरु अर्जुन देव जी की साहिदी

     मुगल बादशाह अकबर की मृत्यु के बाद अक्तूबर, 1605 में जहांगीर मुगल साम्राज्य का बादशाह बनाने के बाद से ही गुरु अर्जुन देव के विरोधी सक्रिय हो गए । उसी बीच, शहजादा खुसरो के द्वारा अपने पिता जहांगीर के खिलाफ बगावत करने के कारण जहांगीर अपने बेटे को यातनाएं देने लगा , तो खुसरो वहां तरनतारन गुरु साहिब के पास पहुंचा। तब गुरु अर्जुन देव जी ने उसका स्वागत किया और उसे अपने यहां पनाह दी।

इस बात की जानकारी जहांगीर को लग गई। तो उसने अर्जुन देव को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। उधर गुरु अर्जुन देव बाल हरिगोबिंद साहिब को गुरुगद्दी सौंपकर स्वयं लाहौर पहुंच गए। उन पर मुगल बादशाह जहांगीर से बगावत करने का आरोप लगा कर जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव जी को यातना देकर मारने का आदेश दिया। गुरु अर्जुन देव को पांच दिनों तक तरह-तरह की यातनाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने शांत मन से सबकुछ सहा । अंत में 30 मई, सन् 1606 को यासा व सियासत कानून के तहत उन्हें लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान गर्म तवे पर बिठाया। उनके ऊपर गर्म रेत और तेल डाला गया। यातना के कारण जब वे मूर्च्छित हो गए, तो उनके शरीर को रावी की धारा में बहा दिया गया। उनके स्मरण में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया, जो वर्तमान में पाकिस्तान में है।

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