पुराणों के अनुसार एक कथा आती हैं की। श्रीदामा जो भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त है। उनकी अनन्य के भक्ति बाद श्री कृष्ण के दर्शन का सौभाग्य ब्रह्मा जी के मध्यम से प्राप्त हुआ। जो ब्रह्मा जी का एक संदेश लेकर श्री कृष्ण के पा स जाना था। उनके साथ नारद जी भी गोलोक के लिए चल दिए। गोलोक पहुंचने के बाद नारद जी ने श्रीदामा से के प्रभु (राधा कृष्ण) का नाम लेकर द्वार खोलने को कहा। तो श्रीदामा ने मना कर दिया। कहा कि मैं प्रभु श्री कृष्ण की भक्ति करता हूं राधा की नही जो उनकी प्रेमिका का नाम अपने प्रभु से पहले लूं।
जब श्रीदामा राधा कृष्ण के समीप पहुंचे तो श्री कृष्ण का राधा के प्रति प्रेम और समर्पण को देख। श्रीदामा क्रोधित हो श्री राधाकृष्ण जी के प्रेम को माया का नाम देकर श्री राधा को पृथ्वी पर जन्म लेने और 100 वर्षो तक श्री कृष्ण को भूले रहने का श्राप दे दिया।
पौराणिक काल में एक राजा नृग थे। उनके यहां सुचन्द्र नामक एक पुत्र का जन्म हुआ। वहीं दूसरी ओर आदि पितरों के यहां संकल्प से 3 कन्याओं की उत्पत्ति हुई। इन तीनों के नाम थे, कलावती, रत्नमाला और मेनका । कलावती का ब्याह सुचंद्र के साथ किया गया। पितरों ने अपनी रुचि के अनुसार ब्रह्मविधि से इन कन्याओं का दान किया। सुचंद्र पत्नी कलावती को लेकर गोमती नदी के तट पर ब्रह्माजी की तपस्या कर राधा को पुत्री रूप में प्राप्ति का वरदान मांगा जिसके फलस्वरूप द्वापर के अंत में सुचंद्र, वृषभानु और कलावती, कीर्ति के रूप में जन्म लिया। फिर कीर्ति के गर्भ से राधा जी का जन्म हुआ । राधा जी श्रीकृष्ण से लगभग 5 वर्ष बड़ी थी।
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