डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शिक्षा के क्षेत्र में योगदान ।

1.       डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5                 सितंबर 1988 को मद्रास प्रेसीडेंसी के चित्तूर               जिले के तिरूतन्नी गांव में (1960 तक वर्तमान           (आंध्र प्रदेश) में हुआ था। वर्तमान में तिरुवल्लूर           जिले में पड़ता हैं।

2.      इनके पिता सर्वपल्ली वीरास्वामी और माता का           नाम सीतम्मा था ।

3.      राधाकृष्ण का बचपन तिरुपति जैसे धार्मिक               स्थलो पर व्यतीत हुआ। इनके पिता हिंदू धर्म             ज्ञाता होने के  बावजूद उन्हें 1896-1900 तक           क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल,             तिरूपति में अध्ययन करने भेजा ।

4.      इन 12 वर्षों के अध्ययन काल में राधाकृष्णन ने 
         बाइबिल के महत्त्वपूर्ण अंश को कंठस्थ कर               लिये। इसके लिये उन्हें विशिष्ट योग्यता का                 सम्मान प्रदान किया गया।

5.      1918 में वे मैसुर महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र के 
          सहायक प्राध्यापक फिर बाद में प्राध्यापक                नियुक्त हुए। 

6.       8 मई 1903 को मात्र 14 वर्ष की आयु में ही              उनका विवाह 'सिवाकामू' नामक कन्या के                साथ सम्पन्न हुआ। उस समय उनकी पत्नी की            आयु मात्र 10 वर्ष की थी।

7.       1908 में 20 वर्ष के उम्र में उन्होंने शास्त्रों का              अध्ययन किया।

8.       डॉ. राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय            मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा            ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा                सकता है। अतः विश्व को एक ही इकाई                    मानकर शिक्षा का प्रबन्धन करना चाहिए।

9.      1909 में 21 वर्ष की उम्र में डॉ० राधाकृष्णन ने           मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में कनिष्ठ व्याख्याता के           तौर पर दर्शन शास्त्र पढ़ाना प्रारम्भ किया।

10.     सन् 1931 से 36 तक आन्ध्र विश्वविद्यालय के             वाइस चांसलर रहे।

11.      ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में 1936 से 1952                तक प्राध्यापक रहे।

12.       कलकत्ता विश्वविद्यालय के अन्तर्गत आने                 वाले जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफेसर                        रूप में 1937 से 1941 तक कार्य किया।

13.        सन् 1939 से 48 तक काशी हिन्दू                          विश्वविद्यालय के चांसलर रहे।

14.       1953 से 1962 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के              चांसलर रहे।

15.       1946 में युनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के                  रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

16.       सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1947 से 1949 तक               संविधान सभा के सदस्य थे।

17.      मास्को में सोवियत संघ के साथ विशिष्ट                    राजदूत के रूप में राजनयिक चुना गया।

18.      सर्वपल्ली राधाकृष्णन कक्षा में यह 20 मिनट              देरी से आते थे और दस मिनट पूर्व ही चले                जाते थे। इनका कहना था कि कक्षा में इन्हें जो            व्याख्यान देना होता था, वह 20 मिनट के                  पर्याप्त समय में सम्पन्न हो जाता था। इसके                उपरान्त भी यह विद्यार्थियों के प्रति आदरणीय            शिक्षक बने रहे।

19.      1952 में सोवियत संघ से आने के बाद डॉक्टर 
          राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति निर्वाचित किये गये ।              संविधान के अंतर्गत उपराष्ट्रपति का नया पद              सृजित किया गया था। फिर द्वितीय राष्ट्रपति के            रूप में चुने गए।

20.     जब वे उपराष्ट्रपति बन गये तो स्वतन्त्र भारत              के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी ने                  1954 में उन्हें उनकी महान दार्शनिक व                    शैक्षिक उपलब्धियों के लिये देश का सर्वोच्च              अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया।

21.     13 मई, 1962 को जब वह राष्टपति बने तो                उनके छात्रों ने बड़े स्तर पर उनका जन्मदिन                मनाने की स्वीकृति मांगी। इस पर राधाकृष्णन            ने कहा कि अगर वे इस दिन को देशभर के                शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस के रूप में            मनाएं तो मुझे गर्व होगा। इस तरह देशभर में              पहली बार 5 सितंबर 1962 में डॉ. सर्वपल्ली              राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर                          पर शिक्षक दिवस मनाने की शुरुआत हुई।

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